घटस्थापना विधि: नवरात्रि का पवित्र आरंभ
नवरात्रि, हिंदू धर्म में शक्ति और भक्ति का महापर्व, माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का शुभारंभ घटस्थापना से होता है। घटस्थापना का महत्व अत्यधिक है क्योंकि यह शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा का आवाहन है। आइए विस्तार से जानते हैं घटस्थापना की सम्पूर्ण विधि और इस प्रक्रिया के महत्त्व को।
घटस्थापना क्या है?
घटस्थापना, जिसे 'कलश स्थापना' भी कहा जाता है, नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। यह देवी माँ का प्रतीकात्मक स्वागत है, जिसमें एक पवित्र कलश (घड़ा) स्थापित किया जाता है, जो जीवन, शक्ति, और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है। इस विधि के माध्यम से हम देवी दुर्गा को अपने घर बुलाते हैं और नौ दिनों तक उनकी उपासना करते हैं।
घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री:
घटस्थापना विधि के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
एक चौड़ा मिट्टी का बर्तन
स्वच्छ मिट्टी
सप्त धान्य (सात प्रकार के अनाज जैसे गेहूं, जौ, चना आदि)
एक तांबे या पीतल का कलश
पवित्र जल (गंगा जल सर्वश्रेष्ठ)
सुपारी, दुर्वा घास, अक्षत (साबुत चावल), इत्र, सिक्के
पाँच पत्ते (आम या अशोक के)
नारियल (छिलका युक्त)
लाल कपड़ा और पवित्र धागा
माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र
दीपक, धूप, फूल, नैवेद्य (फल, मिठाई)
घटस्थापना की प्रारंभिक तैयारी:
घटस्थापना का स्थान पवित्र और शांत होना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले उस स्थान को साफ करें जहाँ घटस्थापना करनी है। यह स्थान आपकी पूजा का केंद्र बिंदु होगा, इसलिए ध्यान दें कि आसपास का माहौल सकारात्मक और शुद्ध हो। आमतौर पर यह कार्य सूर्योदय के बाद और सही मुहूर्त में किया जाता है, इसलिए घटस्थापना का समय पंचांग देखकर ही निर्धारित करें।
मिट्टी के बर्तन में सप्त धान्य बोना:
घटस्थापना की विधि की शुरुआत मिट्टी के बर्तन में सप्त धान्य (सात प्रकार के अनाज) बोने से होती है। एक चौड़ा मिट्टी का बर्तन लें और उसमें शुद्ध मिट्टी की एक परत डालें। इसके ऊपर सप्त धान्य के बीज छिड़कें। ये बीज धन और समृद्धि का प्रतीक होते हैं। अब इन बीजों पर पुनः मिट्टी की एक और परत डालें, ताकि बीज ढंक जाएं। थोड़ा पानी छिड़ककर नमी बनाए रखें ताकि इन बीजों से पौधे उग सकें।
कलश की स्थापना:
कलश की तैयारी:
अब तांबे या पीतल के कलश को लें और इसके गले पर पवित्र धागा बाँधें। कलश को गंगा जल से भरें, हालाँकि यदि गंगा जल उपलब्ध नहीं है तो किसी भी पवित्र जल का उपयोग कर सकते हैं। जल में सुपारी, दुर्वा, अक्षत, इत्र, और कुछ सिक्के डालें। ये सभी वस्तुएं देवी माँ को अर्पित की जाती हैं।
पत्तों की सजावट:
इसके बाद, आम या अशोक के पाँच पत्तों को कलश के किनारे पर सजाएं। ये पत्ते पवित्रता और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं।
नारियल की स्थापना:
अब एक नारियल लें, और उसे बिना छीले लाल कपड़े में लपेटें। इस नारियल को पवित्र धागे से बाँधें और इसे कलश के ऊपर रखें। नारियल देवी माँ के सिर के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
कलश को मिट्टी के बर्तन में रखना:
अब कलश को मिट्टी के बर्तन के बीचों-बीच रखें, जहाँ सप्त धान्य बोए गए हैं। कलश का यह स्थान देवी माँ के आगमन का प्रतीक होता है। यदि संभव हो तो माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र भी साथ में रखें ताकि पूजा की प्रक्रिया को पूर्णता मिले।
माँ दुर्गा का आह्वान और पूजन:
कलश स्थापित होने के बाद, माँ दुर्गा का आह्वान करें। मंत्रों के माध्यम से देवी माँ को आमंत्रित करें और उनसे प्रार्थना करें कि वे कलश में नौ दिनों तक विराजमान रहें और आपकी पूजा को स्वीकार करें। निम्नलिखित मंत्र से देवी माँ का आह्वान किया जाता है:
“ॐ द्रां दुं दुर्गायै नमः”
इसके बाद पंचोपचार पूजा की जाती है जिसमें दीप, धूप, फूल, इत्र और नैवेद्य (फल और मिठाई) अर्पित किया जाता है। ये पूजा की पाँच प्रमुख सामग्रियाँ होती हैं, जो देवी माँ के प्रति श्रद्धा और भक्ति को दर्शाती हैं।
पूरे नवरात्रि के दौरान देखभाल:
पूरे नवरात्रि के दौरान घटस्थापना स्थल की देखभाल अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। रोजाना देवी माँ को ताजे फूल और माला अर्पित करें। मिट्टी के बर्तन में नमी बनाए रखने के लिए प्रतिदिन हल्का पानी छिड़कें ताकि सप्त धान्य के बीज अंकुरित हो सकें। यह अंकुर देवी माँ की कृपा और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
विजया दशमी पर समापन:
नवरात्रि के नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा करने के बाद दशमी (दशहरे) के दिन घटस्थापना का समापन होता है। इस दिन सप्त धान्य के उगे हुए पौधों को काटकर देवी माँ को अर्पित किया जाता है और इन्हें प्रसाद के रूप में परिवार और मित्रों में बाँटा जाता है। इस अनुष्ठान से देवी माँ की कृपा प्राप्त होती है और स्वास्थ्य, समृद्धि तथा सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है।