देवी ब्रह्मचारिणी चालीसा: तपस्या और ज्ञान की देवी की आरती
देवी ब्रह्मचारिणी नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप में पूजी जाती हैं और नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी आराधना की जाती है।
'ब्रह्मचारिणी' का अर्थ है वह देवी जो तप और संयम का पालन करती हैं। यह रूप मां पार्वती का है, जिन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।
देवी ब्रह्मचारिणी ज्ञान, तपस्या, त्याग, और भक्ति की प्रतीक हैं। उनका दाहिना हाथ जपमाला धारण करता है और बाएं हाथ में कमंडल है, जो साधना और संयम का प्रतीक है।
उनकी पूजा से भक्तों को शक्ति, धैर्य, और आत्मसंयम प्राप्त होता है, जिससे जीवन की सभी कठिनाइयों का सामना करने का साहस मिलता है।
देवी ब्रह्मचारिणी जी की आरती पढ़े:
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥
ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सरल संसारा॥
जय गायत्री वेद की माता।
जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए॥
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने॥
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर॥
आलस छोड़ करे गुणगाना।
माँ तुम उसको सुख पहुँचाना॥
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम॥
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी॥